Friday, August 20, 2010

कल किसने देखा है

तन्हाई में तो रोता हूँ मैं,
  पर मेहफिल में लोगों ने मुझे हस्ते हुए देखा है !

मेरे दिल में दर्द दबा है अब भी,
  बस मेरे साए ने मुझे तड़पते हुए देखा है.

नींद नहीं मेरी इन आखों में लेकिन,
  सारे आलम को मैंने चैन से सोते हुए देखा है.

भला कौन केह्ता है, तनहा हूँ मैं,
  मुझे तो तन्हाई ने घेरे हुए रखा है.

चोट से हर दफा शीशा ही क्यूँ चूर हो लेकिन,
  आखिर पत्थर को बिखरते किसने देखा है !

अपने गम में हो जाऊं मशरूफ इतना भी नहीं मैं खुदगर्ज़,
   दूर एक ज़जीरे पे मैंने तुम्हे भी हलके से रोते हुए देखा है.

कह दो इन बोलती आँखों से तुम्हारी, चुप हो जाएँ ये अब!
  अँधेरी रात में भला रोशन सितारा किसने देखा है ?!


जो तुम हसो, तो मैं भी ना रोऊँ दो पल,
  थोडा और जीने दो, बस आजभर. और कल ?! कल किसने देखा है !!!